सनातन में धार्मिक मान्यता यही है कि गंगा नदी के पावन जल में केवल स्नान करने मात्र से लोगों के सारे पाप कट जाते हैं। कहा भी गया है कि कलौ गंगे केवलम. साथ ही आरोग्यता का वरदान प्राप्त होता है। गंगा नदी में स्नान करने के शुभ दिनों में गंगा सप्तमी का दिन भी प्रमुखता से शामिल है। कहा जाता है कि इस शुभ दिन पर गंगा नदी में स्नान करने से सभी पाप हमेशा के लिए मिट जाते हैं। इस साल 3 मई को गंगा सप्तमी है। गंगा सप्तमी पर गंगा स्नान, दान-पुण्य, पूजा-पाठ करने से भक्तों को मोक्ष प्राप्ति का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस विशेष दिन पर मां गंगा की पूरे मन से पूजा करना बेहद लाभदायक माना जाता है। इसके साथ इस दिन कथा का पाठ करना भी मां गंगा के भक्तों के लिए बेहद फायदेमंद साबित होता है। आप यहां से गंगा माता की कथा पढ़ सकते हैं-
कथा-
सनातन शास्त्रों में मां गंगा की उत्पत्ति का वर्णन है। त्रेता युग में इक्ष्वाकु वंश के राजा सगर अयोध्या में राज करते थे। उन्होंने अपने राज्य का व्यापक विस्तार किया। हालांकि, उनके मन में सम्राट बनने की गहन इच्छा थी। इसके लिए उन्होंने पंडितों से सलाह लेकर अश्वमेघ यज्ञ करने की ठानी और उन्होंने पुत्रों को घोड़े के साथ पृथ्वी भ्रमण की आज्ञा दी। राजा सगर के पुत्र जब पृथ्वी भ्रमण कर रहे थे। तभी अश्वमेघ घोड़ा खो गया। यह जानकारी उन्होंने अपने पिता को दी।
राजा सगर ने किसी भी कीमत पर अश्वमेघ घोड़ा लाने की सलाह दी। इसके बाद राजा सगर के पुत्र घोड़े को ढूंढते-ढूंढ़ते कपिल ऋषि के आश्रम में जा पहुंचे। उस स्थान पर घोड़े को बंधा देख उन्हें विश्वास हो गया कि घोड़े की चोरी कपिल ऋषि ने ही की है। राजा सगर के पुत्रों ने कपिल ऋषि को ललकारा और अपमानित भी किया। उस समय कपिल ऋषि क्रोधित हो उठे और तत्क्षण राजा सगर के पुत्रों को भस्म कर दिया। यह जानकारी राजा सगर को हुई। उस समय राजा सगर ने राजकुमार अम्सुमन को यह कार्य सौंपा।
अम्सुमन अश्वमेघ घोड़ा लाने में सफल हुआ। साथ ही पितरों को मोक्ष दिलाने हेतु उपाय भी जाना। उस समय कपिल ऋषि ने कहा-मां गंगा ही उनके पितरों का उद्धार कर सकती हैं। हालांकि, राजा सगर ने अपने पुत्रों को मोक्ष दिलाने के बजाय अश्वमेघ यज्ञ किया। इसके बाद अम्सुमन को सत्ता सौंप राजा सगर तपस्या हेतु वन चले गए। कालांतर में अम्सुमन समेत उनके पूर्वजों ने पितरों को उद्धार दिलाने हेतु मां गंगा की कठिन तपस्या की। इनमें किसी को सफलता नहीं मिली।
कालांतर में राजा दिलीप के पुत्र भगीरथ ने राज त्याग कर हिमालय पर मां गंगा की तपस्या की। भगीरथ को इस कार्य में सफलता मिली। अंततः मां गंगा धरती पर अवतरित हुईं। हालांकि, मां गंगा के वेग को रोकने हेतु भगवान शिव ने अपनी जटाओं में उन्हें समेट लिया। तब भगीरथ ने दोबारा मां गंगा की उस समय मां गंगा ने भगवान शिव की तपस्या करने की सलाह दी। भगवान शिव को प्रसन्न करने के बाद राजा भगीरथ को पितरों को मोक्ष दिलाने में सफलता मिली।
इसी समय श्री गंगोत्री धाम के निकट माँ गंगा के वेग से जह्नु मुनि की यज्ञशाला बह गई। तब जह्नु मुनि ने गंगा नदी को पी कर अपने में समाहित कर लिया। इस समय भी भगीरथ को जह्नु मुनि की तपस्या करनी पड़ी। तब वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को जह्नु मुनि ने अपने कानों से माँ गंगा को बाहर निकाला। इसके पश्चात राजा भगीरथ ने रसातल में जाकर अपने पितरों को उद्धार किया। जब गंगा नदी में राजा सगर के पुत्रों की अस्थि मिली, तो उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई।
गंगा मैया की जय !!